बुधवार, 29 अगस्त 2012

हे महादेव पुनः नील कंठ कहलाना है |

हे महादेव !
युग कल्मष तत्व से ग्रषित है,
सम्बन्ध समूचे स्वार्थ निहित हैं,
ताप-त्रय से विश्व आज दूषित है,
घोर अनाचार छा रहा,
आज तो अम्बर भी बादलों के नीचे आ रहा,
अहंकार-मद आज हाबी हो रहे,
अज्ञानता के सताए इंसान आज
धर्म के अर्थ की निज व्याख्या कर रहे,
सत्ता लोलुप जनहित छोड़ निज हित में खो रहे
मनुज मनुज के तन का भूखा है,
सत्य -तप- दया जीवन से अनदेखा है,
मनुष्य को मनुष्य बनाना है,
कलयुग की कलुषता का गरल
पुनः कंठ में बसाना है
हे महादेव पुनः नील कंठ कहलाना है |