सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

जया एकादशी कथा

जया एकादशी कथा जय एकादशी कथा धर्मराज युधिष्ठिर बोले की हे - भगवान आपने माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया अब कृपया कर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिए इस एकादशी का नाम,विधि और देवता क्या और कौन सा है सो कहिये । श्री कृष्ण भगवान बोले हे राजन माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया है इस एकादशी के व्रत से मनुष्य ब्रह्म हत्या के पाप से छूट जाते हैं और अंत में उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस व्रत से मनुष्य कुयोनि, भूत प्रेत पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है। अतः इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। हे राजन मैं एक पौराणिक कथा कहता हूं एक समय इंद्र नागलोक में अपनी इच्छा अनुसार अप्सराओं के साथ रमण कर रहा था गंधर्व गान कर रहे थे। वहां गंधर्वो में प्रसिद्ध पुष्पवंत उसकी लड़की तथा चित्रसेन की स्त्री मलिन ये सब थे। उस जगह मलिन का लड़का पुष्पवान और उसका लड़का माल्यवान भी था। पुत्ष्पवती नामक एक गंधर्व स्त्री मान्यवर को देखकर मोहित हो गई और कामबाण से चलायमान होने लगी उसने रूप सौंदर्य हाव भाव आदि द्वारा माल्यवान को बस में कर लिया पुष्पवती के सौंदर्य को देखकर माल्यवान भी मोहित हो गया अतः यह दोनों कामदेव के बस में हो गए परंतु फिर भी इंद्र के बुलाने पर नाच गाने के लिए आना पड़ा और अप्सराओं के साथ गाना गाने लगे । परंतु कामदेव के प्रभाव से इनका मन नहीं लगा और अशुद्ध गाना गाने लगे। इनकी भाव भंगिमाओ को देखकर इंद्र ने इनके प्रेम को समझ लिया और इसमें अपना अपमान समझकर इंद्र ने इन्हें श्राप दे दिया की तुम स्त्री पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच का रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल पाओ। इंद्र का श्राप सुनकर यह अत्यंत दुखी हुए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बन कर दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे रात दिन में इन्हें एक क्षण भी निंद्रा नहीं आती थी इस स्थान पर अत्यंत सर्दी थी। एक दिन पिशाच अपनी स्त्री से कहा ना मालूम हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए हैं जिनसे हमें कितनी दुखदाई यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है। दैव योग से एक दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी तिथि आई उस दिन दोनों ने कुछ भी भोजन ना किया और ना कोई पाप कर्म ही किया इस दिन केवल फल फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए वह रात्रि इन दोनों के एक दूसरे से चिपट कर बड़ी कठिनता के साथ काटी। सर्दी के कारण उनको रात्रि में निंद्रा भी नहीं आई दूसरे दिन प्रातः काल होते ही भगवान के प्रभाव से इनकी पिशाच से छूट गई और अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत होकर नाग लोक तो प्रस्थान किया आकाश में देवगण तथा गंधर्व इनकी स्तुति तथा पुथुवर्षा करने लगे नाग लोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया इंद्र को भी इन्हें अपने प्रथम रूप में देखकर महान आश्चर्य हुआ और इनसे पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया सो तब बतलाओ इस प्रकार माल्यावन बोले हे देवेंद्र भगवान विष्णु के प्रभाव तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमारी पिशाच देह छुटी है। इंद्र बोले हे माल्यवान एकादशी व्रत करने से तथा विष्णु के प्रभाव से तुम लोग पिशाच देह को छोड़कर पवित्र हो गए हो और हम लोगों के भी वन्दनीय योग्य हो गए हो।कयोंकि शिवभक हम लोगों के वन्दना करने योग्य है आप धन्य है धन्य है। अब तुम उस युवती के साथ जाकर बिहार करो। युधिस्टर इस जया एकादशी का व्रत करने से समस्त कुयोनी छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब जप तप यज्ञ आदि किए हैं जो मनुष्य भक्ति पूर्वक एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करते हैं। विष्णु भगवान की जय।

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

आज का पंचांग

ऊं श्रीं श्याम देवाय नमः।। ॐ नमो भगवते वासुदेवय।। http://www.jaankaarikaal.com/panchang.php विक्रम सवंत,2077,प्रमादी, उत्तरायण, माघ मास, शुक्ल पक्ष,नक्षत्र रोहिणी नवमी, रविवार, करण कौलव,योग विश्कुम्भ दिनांक-21-02-2021 आपकों व आपके परिवार को मंगलमय हो ।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

मातृभाषा

 मातृभाषा क्या है


जन्म से हम जो भाषा का प्रयोग करते है वही हमारी मातृभाषा है। सभी संस्कार एवं व्यवहार इसी के द्वारा हम पाते है। इसी भाषा से हम अपनी संस्कति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते है।  


सभी राज्यों के लोगों का मातृभाषा दिवस पर अभिनन्दन - हर वो कोई जो उत्सव मना रहा है। उत्सव के लिए कोई भी कारण उत्तम है। भारत वर्ष में हर प्रांत की अलग संस्कृति है, एक अलग पहचान है। उनका अपना एक विशिष्ट भोजन, संगीत और लोकगीत हैं। इस विशिष्टता को बनाये रखना, इसे प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है।


मातृभाषा में शिक्षण की आवश्यकता

आज बच्चे अपनी मातृभाषा में गिनती करना भूल चुके हैं। मैं उन्हें प्रोत्साहित करता हूँ कि वे अपनी मातृभाषा सीखें, प्रयोग करें और इस धरोहर को संभाल के रखें।


आप जितनी अधिक भाषाएँ जानेगें, सीखेंगे वह आपके लिए ही उत्तम होगा। आप जिस किसी भी प्रांत, राज्य से हैं कम से कम आपको वहां की बोली तो अवश्य आनी चाहिए। आपको वहां की बोली सीखने का कोई भी मौका नहीं गवाना चाहिए। कम से कम वहां की गिनती, बाल कविताएँ और लोकगीत। पूरी दुनिया को ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार (Twinkle Twinkle Little Star) या बा - बा ब्लैक शीप ( Ba-ba black sheep) गुनगुनाने की कतई आवश्यकता नहीं है। आपकी लोकभाषा में कितने अच्छे और गूढ़ अर्थ के लोकगीत, बाल कविताएँ, दोहे, छंद चौपाइयाँ हैं जिन्हें हम प्रायः भूलते जा रहे हैं।


भारत के हर प्रांत में बेहद सुन्दर दोहावली उपलब्ध है और यही बात विश्व भर के लिए भी सत्य है। उदाहरण के लिए एक जर्मन बच्चा अपनी मातृभाषा जर्मन (German) में ही गणित सीखता है न कि अंग्रेजी में क्योंकि जर्मन उसकी मातृभाषा है। इसी प्रकार एक इटली में रहने वाला बच्चा भी गिनती इटैलियन (Italian) भाषा में और स्पेन का बालक स्पैनिश (spanish) भाषा में सीखता है।


मातृभाषिक शिक्षण का महत्त्व

किन्तु भारतीय बच्चे अपनी लोकभाषा जिसमें हमें कम से कम गिनती तो आनी चाहिए उसे भूलते जा रहे हैं। इससे हमारे मस्तिष्क पर भी गलत असर पड़ता है और हमारी लोकभाषा में गणित करने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।


जब हम छोटे बच्चे थे तब पहली से चौथी कक्षा का गणित लोकभाषा में पढ़ाया जाता था। अब धीरे धीरे यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोकभाषा, मातृभाषा में बच्चों का बात ना करना अब एक फैशन हो गया है। इससे गाँव और शहर के बच्चों में दूरियाँ बढ़ती हैं। गाँव, देहात के बच्चे जो सबकुछ अपनी लोकभाषा में सीखते हैं अपने को हीन और शहर के बच्चे जो सबकुछ अंग्रेजी में सीखते हैं स्वयं को श्रेष्ठ, बेहतर समझने लगते हैं। इस दृष्टिकोण में बदलाव आना चाहिए। हमारे बच्चों को अपनी मातृभाषा और उसी में ही दार्शनिक भावों से ओतप्रोत लोकगीत का आदर करते हुए सीखने चाहिए। नहीं तो हम अवश्य ही कुछ महत्वपूर्ण खो देंगे।


बांग्ला भाषा में बेहद सुन्दर लोकगीत हैं जो वहां के लोकगायक बाउल ( baul - इकतारे के समान दिखने वाला) नामक वाद्ययंत्र पर गाते बजाते हैं। उनके गायन को सुनकर अद्धभुत अनुभव होता है - गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्ही से ही प्रेरणा ली थी। इसी प्रकार आँध्रप्रदेश में ‘ जनपद साहित्य ‘ और वहां के लोकगीत, छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य, केरला के सुन्दर संगीत, भोजन, संस्कृति सब कुछ अप्रतिम है।


अपनी संस्कृति, सभ्यता

१९७० में कॉलेज के दौरान मैं केरला गया था। तब वहां पर सिर्फ केरल का ही भोजन ‘लाल रंग के चावल’ खाने को मिलते थे। उन्हें सफ़ेद चावल, पुलाव इत्यादि के बारे में कुछ नहीं पता था। वे लोग वही परम्परागत उबले हुए लाल चावल ही खाते थे जो बहुत सेहतमंद होता है। लेकिन आज अगर आप वहां जाएंगे तो बर्गर, पिज़्ज़ा, सैंडविच इत्यादि सब कुछ पाएंगे और इसी प्रकार धीरे धीरे वहां का पंचकर्म और आयुर्वेद लुप्त होने लगा। लेकिन कुछ प्रबुद्ध, विद्वान् लोगों ने उस प्रथा को जीवित रखा और उसे धीरे धीरे वापिस ले आये हैं।


अतः हर प्रांत की कुछ न कुछ अपनी अनूठी विशेषता होती है - वहां का भोजन, संस्कृति, बोली, संगीत, नृत्य इत्यादि जिसका मान करना चाहिए और उस धरोहर को संभाल के रखना चाहिए। यही तो असली में विविधता है जिसका हमें आदर करना चाहिए और प्रोत्साहित करना चाहिए। तभी तो हम वास्तव में ‘विविधता में एकता' की कसौटी पर खरे उतरेंगे जिसका सम्पूर्ण जगत में उदहारण दिया जा सकेगा।


यही बात मैं विश्व के आदिवासी संस्कृति के बारे में भी कहूंगा। कनाडा (Canada) की अपनी एक विशिष्ट आदिवासी प्रजाति है। उनकी अपनी संस्कृति है और इस प्रजाति को वहां की सर्वप्रथम नागरिकता का सम्मान प्राप्त है। इसी प्रकार से अमरीका में भी, मूल अमरीका के निवासी (Indigenous Americans) या अमेरिकन इन्डियन्स प्रजाति के लोग, जो अब अपनी भाषा तो भूल चुके हैं, किन्तु अब भी उन्होनें अपनी संस्कृति, सभ्यता को जीवित रखा है। इसी प्रकार से दक्षिण अमरीकी महाद्वीप में भी ऐसा ही है।


मेरे विचार से यह (भारतीय भाषाएँ एवं संस्कृति) एक विश्व की अनुपम धरोहर है। हमें अपनी सभ्यता के, निष्ठा के बारे में सचेत रहना चाहिए और उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।

- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के ज्ञान वार्ता से कुछ अंश

सतीश शर्मा जी द्वारा संकलित ।

धन प्राप्ति के उपाय

 सोमवार की शाम को काले तिल और कच्चे चावल मिलाकर किसी ब्राम्हण को दान कर दें। ऐसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाएगा। कई बार धन प्राप्ति में पितृ दोष भी रुकावट डालता है। इस उपाय से समस्या हल हो जाएगी।


सोमवार शाम को देसी घी में आटे को भूनकर पंजीरी बना लें। अब इसका भोग भोलेनाथ को लगाएं। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होंगे और आपकी धन संबंधित परेशानी दूर होगी।

अगर धन नहीं टिकता है उन्हें सोमवार को बेलपत्र पर ओम लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। आप इसे 11, 21, 51 और 108 की संख्या में चढ़ा सकते हैं।

सोमवार की शाम को चांदी के नाग—नागिन का जोड़ा दान करें या इसे शिवलिंग पर चढ़ाए। इससे भी धन की किल्लत दूर होगी।

सफेद चंदन शिवलिंग पर लगाने से भी भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। इससे मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

अनावश्यक रूप से धन खर्च होता रहता है तो सोमवार को मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। आप चाहे तो घर पर भी सुनहरी मछलियां रख सकते हैं। इससे ग्रह दोष दूर होंगे।

सोमवार को पांच कन्याओं या ब्राम्हणों को खीर खिलाएं एवं दक्षिणा दें। ऐसा करने से भी घर में मां लक्ष्मी का आगमन होगा।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें लिखे-9312002527
jankarikal@gmail.com 
jaankaarikaal.com