सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
जया एकादशी कथा
रविवार, 21 फ़रवरी 2021
आज का पंचांग
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021
मातृभाषा
मातृभाषा क्या है
जन्म से हम जो भाषा का प्रयोग करते है वही हमारी मातृभाषा है। सभी संस्कार एवं व्यवहार इसी के द्वारा हम पाते है। इसी भाषा से हम अपनी संस्कति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते है।
सभी राज्यों के लोगों का मातृभाषा दिवस पर अभिनन्दन - हर वो कोई जो उत्सव मना रहा है। उत्सव के लिए कोई भी कारण उत्तम है। भारत वर्ष में हर प्रांत की अलग संस्कृति है, एक अलग पहचान है। उनका अपना एक विशिष्ट भोजन, संगीत और लोकगीत हैं। इस विशिष्टता को बनाये रखना, इसे प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है।
मातृभाषा में शिक्षण की आवश्यकता
आज बच्चे अपनी मातृभाषा में गिनती करना भूल चुके हैं। मैं उन्हें प्रोत्साहित करता हूँ कि वे अपनी मातृभाषा सीखें, प्रयोग करें और इस धरोहर को संभाल के रखें।
आप जितनी अधिक भाषाएँ जानेगें, सीखेंगे वह आपके लिए ही उत्तम होगा। आप जिस किसी भी प्रांत, राज्य से हैं कम से कम आपको वहां की बोली तो अवश्य आनी चाहिए। आपको वहां की बोली सीखने का कोई भी मौका नहीं गवाना चाहिए। कम से कम वहां की गिनती, बाल कविताएँ और लोकगीत। पूरी दुनिया को ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार (Twinkle Twinkle Little Star) या बा - बा ब्लैक शीप ( Ba-ba black sheep) गुनगुनाने की कतई आवश्यकता नहीं है। आपकी लोकभाषा में कितने अच्छे और गूढ़ अर्थ के लोकगीत, बाल कविताएँ, दोहे, छंद चौपाइयाँ हैं जिन्हें हम प्रायः भूलते जा रहे हैं।
भारत के हर प्रांत में बेहद सुन्दर दोहावली उपलब्ध है और यही बात विश्व भर के लिए भी सत्य है। उदाहरण के लिए एक जर्मन बच्चा अपनी मातृभाषा जर्मन (German) में ही गणित सीखता है न कि अंग्रेजी में क्योंकि जर्मन उसकी मातृभाषा है। इसी प्रकार एक इटली में रहने वाला बच्चा भी गिनती इटैलियन (Italian) भाषा में और स्पेन का बालक स्पैनिश (spanish) भाषा में सीखता है।
मातृभाषिक शिक्षण का महत्त्व
किन्तु भारतीय बच्चे अपनी लोकभाषा जिसमें हमें कम से कम गिनती तो आनी चाहिए उसे भूलते जा रहे हैं। इससे हमारे मस्तिष्क पर भी गलत असर पड़ता है और हमारी लोकभाषा में गणित करने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।
जब हम छोटे बच्चे थे तब पहली से चौथी कक्षा का गणित लोकभाषा में पढ़ाया जाता था। अब धीरे धीरे यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोकभाषा, मातृभाषा में बच्चों का बात ना करना अब एक फैशन हो गया है। इससे गाँव और शहर के बच्चों में दूरियाँ बढ़ती हैं। गाँव, देहात के बच्चे जो सबकुछ अपनी लोकभाषा में सीखते हैं अपने को हीन और शहर के बच्चे जो सबकुछ अंग्रेजी में सीखते हैं स्वयं को श्रेष्ठ, बेहतर समझने लगते हैं। इस दृष्टिकोण में बदलाव आना चाहिए। हमारे बच्चों को अपनी मातृभाषा और उसी में ही दार्शनिक भावों से ओतप्रोत लोकगीत का आदर करते हुए सीखने चाहिए। नहीं तो हम अवश्य ही कुछ महत्वपूर्ण खो देंगे।
बांग्ला भाषा में बेहद सुन्दर लोकगीत हैं जो वहां के लोकगायक बाउल ( baul - इकतारे के समान दिखने वाला) नामक वाद्ययंत्र पर गाते बजाते हैं। उनके गायन को सुनकर अद्धभुत अनुभव होता है - गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्ही से ही प्रेरणा ली थी। इसी प्रकार आँध्रप्रदेश में ‘ जनपद साहित्य ‘ और वहां के लोकगीत, छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य, केरला के सुन्दर संगीत, भोजन, संस्कृति सब कुछ अप्रतिम है।
अपनी संस्कृति, सभ्यता
१९७० में कॉलेज के दौरान मैं केरला गया था। तब वहां पर सिर्फ केरल का ही भोजन ‘लाल रंग के चावल’ खाने को मिलते थे। उन्हें सफ़ेद चावल, पुलाव इत्यादि के बारे में कुछ नहीं पता था। वे लोग वही परम्परागत उबले हुए लाल चावल ही खाते थे जो बहुत सेहतमंद होता है। लेकिन आज अगर आप वहां जाएंगे तो बर्गर, पिज़्ज़ा, सैंडविच इत्यादि सब कुछ पाएंगे और इसी प्रकार धीरे धीरे वहां का पंचकर्म और आयुर्वेद लुप्त होने लगा। लेकिन कुछ प्रबुद्ध, विद्वान् लोगों ने उस प्रथा को जीवित रखा और उसे धीरे धीरे वापिस ले आये हैं।
अतः हर प्रांत की कुछ न कुछ अपनी अनूठी विशेषता होती है - वहां का भोजन, संस्कृति, बोली, संगीत, नृत्य इत्यादि जिसका मान करना चाहिए और उस धरोहर को संभाल के रखना चाहिए। यही तो असली में विविधता है जिसका हमें आदर करना चाहिए और प्रोत्साहित करना चाहिए। तभी तो हम वास्तव में ‘विविधता में एकता' की कसौटी पर खरे उतरेंगे जिसका सम्पूर्ण जगत में उदहारण दिया जा सकेगा।
यही बात मैं विश्व के आदिवासी संस्कृति के बारे में भी कहूंगा। कनाडा (Canada) की अपनी एक विशिष्ट आदिवासी प्रजाति है। उनकी अपनी संस्कृति है और इस प्रजाति को वहां की सर्वप्रथम नागरिकता का सम्मान प्राप्त है। इसी प्रकार से अमरीका में भी, मूल अमरीका के निवासी (Indigenous Americans) या अमेरिकन इन्डियन्स प्रजाति के लोग, जो अब अपनी भाषा तो भूल चुके हैं, किन्तु अब भी उन्होनें अपनी संस्कृति, सभ्यता को जीवित रखा है। इसी प्रकार से दक्षिण अमरीकी महाद्वीप में भी ऐसा ही है।
मेरे विचार से यह (भारतीय भाषाएँ एवं संस्कृति) एक विश्व की अनुपम धरोहर है। हमें अपनी सभ्यता के, निष्ठा के बारे में सचेत रहना चाहिए और उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के ज्ञान वार्ता से कुछ अंश
सतीश शर्मा जी द्वारा संकलित ।
धन प्राप्ति के उपाय
सोमवार की शाम को काले तिल और कच्चे चावल मिलाकर किसी ब्राम्हण को दान कर दें। ऐसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाएगा। कई बार धन प्राप्ति में पितृ दोष भी रुकावट डालता है। इस उपाय से समस्या हल हो जाएगी।
सोमवार शाम को देसी घी में आटे को भूनकर पंजीरी बना लें। अब इसका भोग भोलेनाथ को लगाएं। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होंगे और आपकी धन संबंधित परेशानी दूर होगी।
अगर धन नहीं टिकता है उन्हें सोमवार को बेलपत्र पर ओम लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। आप इसे 11, 21, 51 और 108 की संख्या में चढ़ा सकते हैं।
सोमवार की शाम को चांदी के नाग—नागिन का जोड़ा दान करें या इसे शिवलिंग पर चढ़ाए। इससे भी धन की किल्लत दूर होगी।
सफेद चंदन शिवलिंग पर लगाने से भी भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। इससे मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
अनावश्यक रूप से धन खर्च होता रहता है तो सोमवार को मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। आप चाहे तो घर पर भी सुनहरी मछलियां रख सकते हैं। इससे ग्रह दोष दूर होंगे।
सोमवार को पांच कन्याओं या ब्राम्हणों को खीर खिलाएं एवं दक्षिणा दें। ऐसा करने से भी घर में मां लक्ष्मी का आगमन होगा।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें लिखे-9312002527