आज भी मुस्लिम समाज की स्थिति ' प्रेशर कुकर एग्जिस्टेंस ', अर्थात एक दम फट पड़ने जैसी है। मुस्लिम नेताओं ने मुसलमानों को नाना प्रकार के मकड़जालों में फांस रखा है , जिनमें से कुछ हैं - अलीगढ़ और जामिया विश्वविद्यालयों का धर्म के आधार पर आरक्षण , सच्चर कमेटी , शाहबानो केस , रंगनाथ मिश्रा आयोग , लिब्राहन आयोग , उर्दू भाषा आदि। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिनका एक आम मुसलमान की रोजाना की जिंदगी से कोई सीधा संबंध नहीं है। इनका महत्व प्रतीकात्मक है। भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा के तहत सदियों से हिंदुओं और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर कई कारनामे अंजाम दिए हैं। बहुत सी बस्तियों में वे मिल - जुलकर रहते चले आए हैं। एक ही माहौल में मंदिर के घंटों को मुसलमानों ने और मुअज्जिन की अजान को हिंदुओं ने मान - सम्मान दिया है। आरक्षण जैसी दीवारें इस मान - सम्मान को ठेस पहुचाती हैं।
फिर से दुर्गा का यहाँ अवतार हो । फिर से दनुजों का यहाँ संहार हो । मातृशक्ति हस्त में फिर से यहाँ , चूड़ियों की जगह अब तलवार हो । लेखनी वह धन्य है जिसमें सदा , जागरण का आमरण हुँकार हो । माँ, बहन, बेटी भी होती नारियाँ , उनकी श्रद्धा, स्नेह का श्रृंगार हो । आत्मा क्यों मर रही इंसान की , सोचिये ,किस तरह का आचार हो । गंदे मन को साफ़ कर के प्रण करें , अब ना कोई दामिनी शिकार हो । फैसला ना दे सके संसद अगर , फैसला कर किसकी अब सरकार हो ।
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जवाब देंहटाएंआज भी मुस्लिम समाज की स्थिति ' प्रेशर कुकर एग्जिस्टेंस ', अर्थात एक दम फट पड़ने जैसी है। मुस्लिम नेताओं ने मुसलमानों को नाना प्रकार के मकड़जालों में फांस रखा है , जिनमें से कुछ हैं - अलीगढ़ और जामिया विश्वविद्यालयों का धर्म के आधार पर आरक्षण , सच्चर कमेटी , शाहबानो केस , रंगनाथ मिश्रा आयोग , लिब्राहन आयोग , उर्दू भाषा आदि। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिनका एक आम मुसलमान की रोजाना की जिंदगी से कोई सीधा संबंध नहीं है। इनका महत्व प्रतीकात्मक है। भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा के तहत सदियों से हिंदुओं और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर कई कारनामे अंजाम दिए हैं। बहुत सी बस्तियों में वे मिल - जुलकर रहते चले आए हैं। एक ही माहौल में मंदिर के घंटों को मुसलमानों ने और मुअज्जिन की अजान को हिंदुओं ने मान - सम्मान दिया है। आरक्षण जैसी दीवारें इस मान - सम्मान को ठेस पहुचाती हैं।
जवाब देंहटाएंफिर से दुर्गा का यहाँ अवतार हो ।
जवाब देंहटाएंफिर से दनुजों का यहाँ संहार हो ।
मातृशक्ति हस्त में फिर से यहाँ ,
चूड़ियों की जगह अब तलवार हो ।
लेखनी वह धन्य है जिसमें सदा ,
जागरण का आमरण हुँकार हो ।
माँ, बहन, बेटी भी होती नारियाँ ,
उनकी श्रद्धा, स्नेह का श्रृंगार हो ।
आत्मा क्यों मर रही इंसान की ,
सोचिये ,किस तरह का आचार हो ।
गंदे मन को साफ़ कर के प्रण करें ,
अब ना कोई दामिनी शिकार हो ।
फैसला ना दे सके संसद अगर ,
फैसला कर किसकी अब सरकार हो ।